Book Title: Shrenik Charitra Bhasha
Author(s): Gajadhar Nyayashastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 382
________________ ( ३६१ ) हैं। आपसमें भी तिर्यंच एक दूसरेको दुःख दिया करते हैं। मनुष्योंद्वाराभी वे अनेक दुःख भोगते हैं। एवं जब एक बलवान तिर्यंच दूसरे निर्बल तिर्यचको पकड़कर खाजाता है तब भी उन्हें अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं। मनुष्यभवमें भी नब मनुष्यों के माता पिता पुत्र मित्र मरजाते हैं उस समय उन्हें अधिक दुःख होता है धनाभाव दरिद्रता सेवा मादिसे भी अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं। देवगतिमें भी अनेक प्रकारके मानसिक दुःख होते हैं। मरणकालमें भी माला सुखजानेसे और देवांगनाके वियोगसे भी देवोंको अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं। दुष्ट देवोंद्वारा भी अनेक दुःख सहने पड़ते हैं। इस प्रकार सर्वथा दुःखप्रद चतुर्गतिरूप संसारमें चारों ओर दुःख ही दुःख भरा हुआ है । रंचमात्र भी सुख नहिं । इस रीतिसे चिरकाल पर्यंत विचारकर रानी चेलना भवभोगोंसे सर्वथा विरक्त हो गई और शीघ्रही भगवान महावीरके समवसरणकी ओर चलदी । समवसरणमें जाकर रानीने तीन प्रदक्षिणा दीं, भक्तिपूर्वक पूजा और स्तुति की और यति धर्मका व्याख्यान सुना पश्चात् चंदना नामकी आर्यिका के पास गई । अपनी सासुको भक्तिपूर्वक नमस्कार कर अनेक रानियोंके साथ शीघ्रही संयम धारण करलिया। चिरकाल तक तए किया । मायुके अंतमें सन्यास लेकर और ध्यानबलसे प्राण परित्याग कर निर्मल सम्यग्दर्शनकी कृपासे स्त्रीवेदका त्याग किया और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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