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उस समय उन्हें और कूछ न सुझा । वे चेलना और अंतःपुरक साथ बेहोश हो करुणाजनक इसप्रकार रोदन करने लगे
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हा नाथ ! हा कृपाधीश ! हा स्वामिन् ! हा महामते ! हा विनाकारण समस्त जगतके बंधु ! हा प्रजाधीश ! हा शुभ ! हा तात ! हा गुणमंदिर ! हा मित्र ! हा शुभाकार ! हा ज्ञानिन् ! यह तुमने विना समझे क्या करपाड़ा ? आप ज्ञानी थे। आपको ऐसा करना सर्वथा अनुचित था । महाराजकी मृत्युसे नंदश्री और रानी चेलनाको परमदुःख हुआ । उनकी अखोंसे अविरल अश्रुधारा वह निकली । उन्होंने शीघ्रही अपने केश उपाट दिये छाती कूटने लगी । हार तोड़ दिये । हाथ के कंकण तोडकर फेंक दिये । हाहाकार करती जमीनपर गिरगई और मूर्छित होगईं । शीतोपचार से बड़े कष्टसे रानीको होशमें लाया गया । ज्योंही रानी होश में आई तो उसै और भी अधिक दुःख हुआ । वह पति विना चारों ओर अपना पराभव देख वह इसप्रकार विलाप करने लगी
हा प्राणवल्लभ | हा नाथ ! हा प्रिय ! हा कांत ! हा दयाशि ! हा देव ! हा शुभाकार ! हा मनुष्येश्वर ! मुझ पापिनीको छोड़ आप कहां चले गये ? हाय ! मैं अशरण निराधार आपने कैसे छोड़ दी ? रनवासके इसप्रकार रोनेपर समस्त पुरवासी जन और स्त्रियां भी असीम रोदन करने लगीं । पश्चात् राजा कुणकने महाराजका संस्कार किया । रानी चेलना
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