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( ३३५) | शुद्धि गंगाजलसे कैसे हो शकती है ? अरे भाई । यदि यह बात | ठीक हो कि स्नानसे शुद्धि हो जाती है तो मछलियां रातदिन गंगाके जलमें पड़ी रहती हैं । धीवर हमेशह न्हाते धोते रहते हैं । उन्हें शुद्ध हो सीधे स्वर्ग चले जाने चाहिये । प्रिय भाई ! तुम निश्चय समझो मीतरी शुद्धि स्नानसे नहिं होती किंतु तप व्रत जप ध्यान क्षमा और शुभभावसे होती है। देखो, शराबका घड़ा । हजारवार धोनेपर भी जैसा शुद्ध नहिं होता उसी प्रकार यह देहभी पापभय है अब्रह्म आदि पापोंसे व्याप्त है । कदापि इस देहकी स्नानसे शुद्धि नहिं हो सकती। किंतु जिन मनुष्योंने ज्ञानतीर्थका अवगाहन किया है-ज्ञानतीर्थमें स्नान किया है वे विना जलकेही घीके घड़ेके समान शुद्ध रहते हैं । वणिकके ऐसे वचन सुन ब्राह्मणने शीघ्रही तीर्थमूढताका त्याग कर दिया। वहीं पर एक तपस्वी भी पंचाग्नितप तपरहाथा। वणिक ब्राह्मण रुद्रदत्तको उसके पास ले गया और जलती हुई अमिमें अनेक प्राणियोंको मरते दिखाया जिससे विप्रसे पाखं. डीतपोमूढ़ता भी छुड़वा दी और यह उपदेशभी दिया कि--
वेदमें जो यह बात बतलाई है हिंसावाक्य भयका देनेवाला होता है। यह पाखंडी तप महान हिंसाका करनेवाला है सो कैसे तुम्हारे मनमें योग्य जच सकता है ! प्रिय विप्र! यदि विना दयाकेभी धर्म कहा जायगा तो विल्ली मूंसे वाघ व्याध आदिको भी धर्मात्मा कहे जायगे । यज्ञमें सफेद छागका मारना
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