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(३३३ ) विप्रवर ! कृपया कहो यह किस नामका धारक देव है ! और इसका माहात्म्य क्या है ! विप्रने जवाब दिया
विष्णु भगवानके वासके लिये यह बाधिकर्म नामका देव | है । यह इच्छानुसार मनुष्योंका बिगाड़ सुधार कर सकता है । | ब्राह्मणके मुखसे वृक्षकी यह प्रशंसा सुन वणिकने शीघ्रही उसमें दो लात मारी और उससे पत्ते तोड़कर उन्हें जमीन पर बिछाकर शीघ्रही उनके ऊपर बैठि गया और विप्रसे कहने लगा
प्रियविप्र ! अपने ईश्वरका प्रताप देखो। अरे ! यह वनस्पति मनुप्यों पर क्या रिस खुश हो सकती है ? वणिककी वैसी चेष्टा देख रुद्रदत्तने जवाब तो कुछ नहिं दिया किंतु अपने मनमें यह निश्चय किया कि अच्छा क्या हर्ज है ? कभी मैं भी इसके देवताको देखंगा । इस वणिकने नियमसे मेरा अपमान किया है तथा इस प्रकार अपने मनमें विचार करतार कहने लगा-भाई ! देवकी परीक्षामें किसीको मध्यस्थ करना चाहिये । ब्राह्मण रुद्रदत्तके ऐसे वचन सुन वणिकने उसके अंतरंगकी | कालिमा समझ ली तथा वह वणिक उसै इस रीतिसे समझाने लगा
प्रिय मित्र ! यह पीपल एकेंद्रिय जीव है । इसमें न तो मनुष्योंके समान विशेष ज्ञान है न किसी प्रकारकी सामर्थ्य है। यह तो केवल पक्षियोंका घर है । तुम निश्चय समझो सिवाय शुभाशुभ कर्मके यहां किसीमें सामर्थ्य नहिं जो मनुष्योंका बिगाड़ सुधार कर सके । प्रिय भ्राता ! यह निश्चय है जो
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