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त्रयोदशसर्ग |
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गणके स्वामी मुनियोंमें उत्तम श्रीगौतम गणधरको भक्तिपूर्वक नमस्कार कर बड़ी विनयसे कुमार अभयने अपने भवों को पूछा - कुमारको इस प्रकार अपने पूर्वभव श्रवणकी अभिलाषा देख गौतम गणधर कहने लगे- कुमार अभय ! यदि तुम्हें अपने पूर्ववृतांत सुननेकी अभिलाषा है तो मैं कहता हूं, तुम ध्यानपूर्वक सुनोः -
इसी लोकमें एक वेणातड़ाग नामकी पुरी है । वेणातड्रागमें कोई रुद्रदत्त नामका ब्राह्मण निवास करता था वह रुद्रदत्त बड़ा पाखंडी था इसलिये किसी समय तीर्थाटन के लिये निकल पड़ा और घूमता २ उज्जयनी में जा निकला । उस समय उज्जयनीमें कोई अर्हदास नाम का सेठ रहता था। उसकी प्रियभार्या जनमती थी वे दोनों ही दंपती जैनधर्मके पवित्र सेवक थे । अनेक जगह नगर में फिरता फिरता रुद्रदत्त सेठि अर्हदास के घर आया और कुछ भोजन मागने लगा । वह समय रात्रिका था इसलिये ब्राह्मणकी भोजनार्थ प्रार्थना सुन जिनमतीने कहा
यह समय रात्रिका हैं | विप्र ! मैं रात्रिमें भोजन न दूंगी। सेठानी जिनमत के ऐसे वचन सुन रुद्रदत्तने कहाबहिन ! रात्रिमें भोजन देने में और करने में क्या दोष है ? जिससे तू मुझे भोजन नहिं देती ? जिनमतीने कहा-
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