Book Title: Shrenik Charitra Bhasha
Author(s): Gajadhar Nyayashastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 355
________________ ( ३३४ ) मनुष्य धर्मात्मा है बड़े२ देव भी उनके दास बन जाते हैं और पापियोंके आत्मीयजन भी उनसे विमुख हो जाते हैं। इस प्रकार अपनी वचनभंगीसे और जिनेंद्र भगवानके आगमकी कृपासे श्रावक उस वणिकने शीघ्रही ब्राह्मणका मिथ्यात्व दूर कर दिया और वे दोनों स्नेहपूर्वक बातचीत करते हुए आगेको चल दिये। आगे चल कर वे दोनों गंगा नदिके किनारे पहुंचे । वणिक तो भूखा था इसलिये वह खानेको बैठि गया और रुद्रदत्त शीघ्रही स्नानार्थ गंगामें घुस गया। बहुत देर तक उसने गंगामें स्नान किया पानी उछालकर पितरोंको पानी दिया पश्चात् जहां वह जैन श्रावक भोजन कर बैठा था वहीं आया । विप्रको आता देख वाणकने कहा विप्रवर ! यह झूठा भोजन रक्खा है आ खाओ । वणिककी ऐसी वात सुन विप्रने जवाब दिया वणिक सरदार ! यह बात कैसे हो सकती है ? झूठा भोजन खाना किस प्रकार योग्य नहिं । विपके ऐसे वचन सुन वणिकने जवाब दिया ___ भाई, यह भोजन गंगाजल मिश्रित है । इसमें झूठापन कहांसे आया ? तुम निर्भय हो खाओ। गंगाजल मिश्रित होनेसे इसमें जराभी दोष नहिं । यदि कहो की तीर्थ जलसे मिश्रितभी झूठा भोजन योग्य नहिं हो सकता तो तुम्हीं बताओ पाएकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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