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(३२७ ) तत्त्वोंके साथ पुण्य और पाप जोड़ दिये जाय तो येही नव पदार्थ कहलाते है । इस प्रकार पदार्थोंके स्वरूपके वर्णनके अनंतर भगवानने श्रावक मुनिधर्मका भी वर्णन किया। महाराज श्रेणिकके प्रश्नसे भगवानने त्रेसठिसलाका पुरुषोंका चरित्र भी वर्णन किया । जिससे महाराज श्रेणिकके चित्तमें जो जैनधर्म विषयक अंधकार था शीघ्र ही निकल गया। जब महाराज श्रेणिक भगवानकी दिव्यध्वनिसे उपदेश सुन चुके तो अतिशय विशुद्ध मनसे राजा श्रेणिकने गौतम गणध को नमस्कार किया और विनयसे इस प्रकार निवदन करने लगे
भगवन् ! पुराणश्रवणसे जैनधर्ममें मेरी बुद्धि दृढ़ है। संसार नाश करनेवाली श्रद्धा भी मुझमें है तथापि प्रभो ! मैं नहिं जान सकता मेरे मनमें ऐसा कोनसा अभिमान वैठा है जिससे मेरी बुद्धि व्रतोंकी ओर नहिं झुकती। मगधेशके ऐसे वचन सुन गणनायक गौतमने कहा:
राजन् ! भोगके तीव्र संसर्गसे गाढ़ मिथ्यात्वसे मुनिराजके गलेमें सपे डालनेसे दुश्चरित्रसे और तीव्रपरिग्रहसे तूने पहिले नरकायु बांध रक्खी है इसलिये तेरी परिणति व्रतोंकी
ओर नहिं झुकती । जो मनुष्य देवगतिका बंधन बांध चुके हैं। उन्हींकी बुद्धि व्रत आदिमें लगती है। अन्यगतिकी आयु बांधनेवाले मनुष्य व्रतोंकी ओर नहिं झुकते । नरनाथ ! संसारमें तू भव्य और उत्तम है । पुराणश्रवणसे उत्पन्न हुई विशुद्धिसे
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