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३.२ )
दिशायें प्रकाश करनेवाल रत्नमयी दीपकोंसे और उत्तम धूपसे भी भगवानका पूजन किया । एवं मोक्षफलकी प्राप्तिके लिये उत्तमोत्तम फल और अनर्घपदकी प्राप्त्यर्थ अर्घभी भगवानके सामने चढ़ाये । जब महाराज श्रेणिक अष्टद्रव्यसे भगवानकी पूजा कर चुके तो उन्होंने सानंद हो इसप्रकार स्तुति करना प्रारंभ कर दिया.--
हे समस्त देवोंके स्वामी ! बड़े २ इंद्र और चक्रवर्तियोंसे पूजित आपमें इतने अधिक गुण हैं कि प्रखर ज्ञानके धारक गणधरभी आपके गुणों का पता नहिं लगा सकते । आपके गुणस्तवन करनेमें विशाल शक्तिके धारक इंद्रभी असमर्थ है । मुझे जान पड़ता है कामको सर्वथा आपनेही जलाया है । क्योंकि महादेव तो उसके भयसे अपने अंगमें उसकी विभूति लपेटे फिरते हैं । विष्णु रातदिन स्त्रीसमुदायमें घूसे रहते हैं । ब्रह्माभी चतुर्मुख हो चारों दिशाकी ओर कामदेवको देखते रहते हैं । और सदा भयसे कपते रहते हैं । प्रभो! ऊंचापना जैसा मेरु पर्वतमें है अन्य किसीमें नहिं उसी प्रकार अखंड ज्ञान जैसा आपमें है वसा किसीमें नहिं । दीनबंधो ! जो मनुष्य आपके चरणाश्रित हो चुका है यदि वह मत, और सुगंधिसे आये भोगेकी झंकारसे अतिशय क्रुद्ध महाबली गजके चक्रमें भी आजाय ता भी गज उसका कुछ नहिं कर सकता । जिस मनुष्यक पास आपका ध्यानरूपी अष्टापद मो.
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