________________
( ३२० )
रहे हैं। बिल्ली वैर रहित मूसोंके साथ खेल रहे हैं । अपनापुत्र समझ हथिनी सिंहनीके बच्चोंको आनंद से दूध पिला रही है और सिंहनी हथिनियों के बच्चों को प्रेमसे दूध पिला रही है । प्रजापालक ! समवसरणके प्रसादसे समस्तजीव वैर रहित होगये हैं मयूरगण सर्पोंके मस्तकोंपर आनंद से नृत्यकर रहे हैं । विशेष कहांतक कहा जाय इससमय नहिं संभव भी काम बड़े २ देवोंसे सेवित महावीर भगवानकी कृपासे होरहे हैं । मालीके इसप्रकार अचिंत्यप्रभावशाली भगवान् महावीरका आगमन सुन मारे आनंदके महाराजका शरीर रोमांचित होगया । उदयादिसे जैसा सूर्य उदित होता है महाराज भी उसीप्रकार शीघ्रहां सिंहासन से उठपड़े। जिस दिशामें भगवानका समवशरण आया था उसदिशा की ओर सात पैंड चलकर भगवानको परोक्ष नमस्कार किया । उस समय जितने उनके शरीर पर कीमती भूषण और वस्त्र थे तत्काल उन्हें मालीको देदिया धन आदि देकर भी मालीको संतुष्ट किया । समस्त जीवोंकी रक्षा करनेवाले महाराजने समस्त नगरनिवासियोंके जनानेके लिये बड़ी भक्ति और आ नंदसे नगर में ड्योढ़ी पिटवा दी । ड्योढ़ीकी आवाज सुनतेही नगरनिवासी शीघ्र ही राजमहल के आंगन में आगये उनमें अनेक तो घोड़ोंपर सवार थे और अनेक हाथीपर और रथोंपर बैठे थे । सब नगरनिवासियों के एकचित्त होतेही रानी पुरवासी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com