________________
( ३१९ )
की है क्योंकि सज्जनोंका चित्त जैसा रस पूर्ण करुणा आदिरसोंसे व्याप्त रहता है तालाब भी उसी प्रकार रसपूर्ण जल से भरे हुए हैं सज्जनोंका चित्त जैसा सपद्म- अष्टदलकमलाकार होता है तालाब भी सपद्म — मनोहर कमलोंसे शांभित है सज्जनचित्त जैसा वर — उत्तम होता हैं तालाबभी वर - उत्तम है सज्जन चित्त जैसा निर्मल होता है तालाब भी उसी प्रकार निर्मल है । सज्जनोंके चित्त जैसे गंभीर होते हैं तालाबभी इस समय गंभीर है इसप्रकारसे भी वनश्रीने स्त्री की तुलना की है क्योंकि – स्त्री जैसी सवंशा - कुलना होती है वनश्री भी सर्वंशा वांसा से शोभित है। स्त्री जैसी तिलकोद्दीप्ता तिलक से शोभित रहती है वनश्री भी तिलकोद्दीप्ता – तिलकवृक्षसे शोभित है स्त्री जैसी मदनाकुला - कामसे व्याकुलरहती है वनश्री भी मदनाकुला - मदन वृक्षोंसे व्याप्त है । स्त्री जैसी सुवर्णा मनोहर वर्णवाली होती है वनश्री भी सुवर्णा हरे पीले वर्णोंसे युक्त है । स्त्रीके सर्वागमें जैसा मन्मथ काम जाज्वल्यमान रहता है वनश्री भी मन्मथजातिके वृक्षों से जहां तहां व्याप्त है पद्मिनी स्त्री जैसी भोरों की जंघारोंसे युक्त रहती है वनश्रीभी भोंरोकी जंघारसे शोभित है स्त्री जैसीहास्य युक्त होती हैं वनश्री भी पुष्परूपी हास्य युक्त है । स्त्री जैसी स्तन युक्त होती है वनश्री भी ठीक उसीप्रकार फलरूपी स्तनोंसे शोभित है । प्रभो ! इससमय नोले आनंदसे सर्पोंके साथ क्रीड़ा कर
-
I
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
―
www.umaragyanbhandar.com