Book Title: Shrenik Charitra Bhasha
Author(s): Gajadhar Nyayashastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 345
________________ (३२४) www.rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr आपमें हैं इनसे अधिक आपमें गुण नहिं । इस लिये हे कल्याणरूप जिनेंद्र ! आपके लिये नमस्कार है । महामुने ! परमयोगीश्वर वीरभगवान् ! आप मेरी रक्षा करें। ___इस प्रकार भगवान महावीरको भक्तिपूर्वक नमस्कार कर और गातम गणधरको भी भक्तिपूर्वक शिर नवाकर महाराज मनुष्य कोठेमें वैठि गये । एवं धर्मरूपी अमृतपानकी इच्छासे हाथ जोड़कर धर्मकी बाबत कुछ पूछा-महाराज श्रेणिकके इस प्रकार पूछनेपर समस्त प्रकारकी चेष्टाओंसे रहित भगवान | महावीर अपनी दिव्यवाणीसे इस प्रकार उपदेश देने लगे-- राजन् ! सकल भव्योत्तम ! प्रथम ही तुम सात तत्वोंका श्रवण | करो । सातों तत्त्व सम्यग्दर्शनके कारण है और सम्यग्दर्शन मोक्षका कारण है । वे सात तत्त्व जीव, अजीव, आसव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष हैं । जीवके मूल भेद दो हैं-वस और स्थावर । स्थावर पांच प्रकार हैं-पृथ्वी, अप् , तेज, वायु और वनस्पति । ये पांचो प्रकारके जीव चारों प्राणवाले होते हैं । और इनके केवल स्पर्शन इंद्रिय होती है । ये पांचो प्रकारके जीव सूक्ष्म और स्थूल भेदसे दो प्रकार भी कहे गये हैं और ये सब जीव पर्याप्त अपर्याप्त और लब्धपर्याप्त इस रीतिसे तीन प्रकार भी हैं। पृथ्वीजीव चार प्रकार हैं-पृथ्वीकाय, पृथ्वीजीव, पृथ्वी और पृथ्वीकायिक । इसी प्रकार जलादिके भी चार२ भेद समझ लेना चाहिये । आदिके चार जीव घनांगुलके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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