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( ३१५ ) आया ? तेरा निवासस्थान कहां है ? और तूं यहां आकर क्या सिद्ध करना चाहता है ? कुमारके ऐसे बचन सुन उस पुरुष ने कहा।
राजकुमार ! मेरावृत्तात आतिशय आश्चर्यकारी है यदि आप उसे सुनना चाहते हैं तो सुनें मैं कहता हूं।
विजयापर्वतकी उत्तरदिशा में एक गमनप्रिय नामका नगर है । गमनाप्रिय नगर का स्वामी अनेक विद्याधर
और मनुष्योंसे सेवित मैं राजा वायुवेग था । कदाचित् मुझे विजयापर्वतपर जिनेन्द्र चैत्यालयोंके बंदनार्थ आभिलाषा हुई । मै अनेक राजाओं के साथ आकाशमार्गसे अनेकनगरोंको निहारता हुवा विजयार्धपर्वतपर आगया । उसी समय राजकुमारी सुभद्रा जो कि बालकपुरके महाराज की पुत्री थी अपनी सखियों के साथ विजया पर्वत पर आई । राजकुमारी सुभद्रा आतिशय मनोहरा थी यौवनकी अद्वितीय शोभासे मंडित थी मृगनयनी थीं। उसके स्थूल किंतु मनोहरनितंब उसकी विचित्र शोभा बनारहे थे एवं रतिके समान अनेकविलाससंयुत होनेसे वह साक्षात् रतिही जानपड़ती थी । ज्योंही कमलनेत्रा सुभद्रा पर मेरी दृष्टी पडी मैं बेहोस होगया कामबाण मुझे वेहद रीतिसे बेधने लगे। मेरा तेजस्वीभी शरीर उस समय सर्वथा शिथिल हो गया विशेष कहां तक कहूं तन्मय होकर मैं उसीका ध्यान करने लगा।
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