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( ३१४ ) ___ कुछ समय सोचनेपर उन्हें यहबात मालूम हुई कि यह काम बिना किसी व्यतर की कृपासे नहीं होसक्ता इसलिये आधीरात के समय घरसे निकले । व्यतरकी खोजमें किसी श्मशानभूमिकी ओर चलदिये। एवं वहां पहुंचकर किसी विशाल वटवृक्ष के नीचे इधर उधर घूमने लगे । वह श्मशान उलूकों के फूत्कार शब्दोंसे व्याप्त था शृगालोंके भयंकर शब्दोंसे भयावह था । जगह २ वहां अजगर फुकारशब्द कररहे थे मदोन्मत्त हाथियों से अनेक वृक्ष उजड़े पड़े थे। अर्द्धदाहमुर्दे और फूटे घड़ोंके समान उनके कपाल वहां जगह २ पड़े थे मांसाहारी भयंकरजीवोंके रौद्रशब्द क्षण २ में सुनाई पड़तेथे अनेक जगह वहां मुरदे जलरहे थे और चारों ओर उनका धूआं फैला हुवा था मांसलोलुपी कुतेभी वहां जहां तहां भयावह शब्द करते थे। चारो ओर वहां राखकी ढेरिया पड़ी थीं। इसलिये मार्ग जाननाभी कठिन पड़जाता था। एवं चारोओर वहां हड्डियांभी पड़ीथी । बहुत काल अंधकारमें इधर उधर घूमनेपर किसी वटवृक्षके नीचे कुछ दीपक जलते हुवे कुमारको दीख पड़े वह उसी वृक्षकी
ओर झुक पड़ा और वृक्ष के नीचे आकर उसे धीर वीर जयशील स्थिरचित्त चिरकालसे उद्विग्न एवं जिसके चारो ओर फूलरक्खे हुए हैं कोई उत्तम पुरुष दीखपड़ा । पुरुषको ऐसी दशापन्न देख कुमारने पूछा। ____भाई ! तू कौन है ? क्या तेरा नाम है ? कहांसे तू यहां
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