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भूषित, और मोक्षगामी था । वारिषेणके अनंतर रानी चेलना के हल्ल हल्लके पीछे विदल विदलके पछि जितशत्रु ये तीन पुत्र और भी उत्पन्न हुए । और ये तनिोंही कुमार मातापिताको आनंदित करने वाले हुए।
इस प्रकार इन पांच पुत्रों के बाद रानी चेलना के प्रवल भाग्योदयसे सवको आनंद देने वाला फिर गर्भ रहगया गर्भके प्रसादसे रानी चेलनाका आहार कम होगया । गतिभी धीमी होगई । शरीर पर पांडिमा छागई । आवाज मंद होगई । शरीर अति कृश होगया । पेटकी त्रिवलीभी छिपगई । होनेवाला पुत्र समस्त शत्रुओंके मुख काले करेगा इसबातको मानो जतलाते हुवे ही उसके दोनों चूचकभी काले पड़गये । एवं गर्भभारके सामने उसे भूषणभी नहि रुचने लगे।
किसी समय रानीके मनमें यह दोहला हुवा कि ग्रीष्मकाल में हाथीपर चढ़कर वरषते मेहमें इधर उधर घूमूं । किंतु इस इच्छा की पूर्ति उसे अतिकठिन जानपड़ी । इसलिये उस चिंतासे उसका शरीर दिनोदिन अधिक क्षीण होनेलगा । जब महराजने रानीको अतिचिंताग्रस्त देखा तो उन्हें परमदुःख हवा । चिंताका कारण जाननेके लिये वे रानी से इसप्रकार कहने लगे।
प्रिये ! मैं तुम्हारा शरीर दिनोदिन क्षीण देखता चलाजाता । हूं मुझे शरीर की क्षीणता का कारण नहीं जान पड़ता तुम
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