________________
( ३११ ) समय अपने वक्षस्थलको चीरा और उससे निकले रक्तको रानी चेलनाको दिखाकर उसकी इच्छाकी पूर्ति की । नवम मासके पूर्ण होने पर रानी चेलनाके पुत्र उत्पन्न हुआ । पुत्रोत्पत्तिका समाचार महाराजके पासभी पहुंचा । उन्होंने दीन अनाथ याचकोंको इच्छाभर दान दिया और पुत्रको देखने के लिए गर्भगृहमें गये । ज्योंही महाराज अपने पुत्र के पास गये । महा राजको देखतेही उसै पूर्वभवका स्मरण हो आया । महाराजको पूर्वभवका अपना प्रबल बैरी जान मारे क्रोधके उसकी मुंठी बँधगई । मुख भयंकर और कुटिल होगया । नेत्र लोहूलोहान होगये । मारे क्रोधके भौहैं चढ़गई । ओठभी डसने लगा
और उसकी आखेंभी इधर उधर फिरने लगी । रानीने जब उसकी यह दशा देखी तो उसै प्रबल अनिष्टका करनेवाला समझ वह डर गई । अपने हितकी इच्छासे निर्मोह हो उसने वह पुत्र शीघ्रही वनको भेज दिया । जब राजाको यह पता लगा कि रानीने भयभीत हो पुत्र वनमें भेज दिया है तो उससे न रहागया पुत्रपर मोहकर उन्होंने शीघ्रही उसे राजमांदरमें मंगा लिया उसै पालनपोषणके लिए किसी धायके हाथ सोंप दिया । और उसका नाम कुणिक रख दिया। एवं वह कुणिक दिनोदिन बढ़ने लगा । कुमारकुणिकके बाद रानी चेलनाके वारिषेणनामका दूसरा पुत्र हुआ। कुमारवारिषण अनेक ज्ञानविज्ञानोंका पारगामी, मनोहर रूपका धारक, सम्यग्दर्शनसे
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com