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__सुभद्रा विना जब मेरा एक क्षणभी बर्षसरीखा वीतने लगा तो विना किसीके पूछे मैं जबरन सुभद्राको हरलाया और गमनप्रिय नगर में आकर आंनदसे उसके साथ भोग भोगनेलगा । इधर मैं तो राजकुमारी सुभद्रा के साथ आनन्द से रहने लगा और उधर किसी सखीने वलाकपुरकेस्वामी सुभद्राके पितासे सारी वोखता कहसुनाई और मेरा ठिकाना भी बतला दिया सुभद्राकी इसप्रकार हरणवार्ता सुन मारे क्रोधके उसका शरीर भभक उठा और विमानपंक्तियों से समस्त गगनमंडलको आच्छादन करता हुआ शीघ्र ही गमनप्रिय नगरकी ओर चल पड़ा। विलाकपुरके स्वामीका इसप्रकार आगमन मैंने भी सुना अपनीसेना सजाकर मैं शीघ्रही उसके सन्मुख आया चिरकालतक मैंने उसके साथ और अनेक विद्याओंके जानकार तीक्ष्णखङ्गोंके धारी उसके योधाओंके साथ युद्ध किया । अंत में बलाकपुरके स्वामीने अपने विद्याबलसे मेरी समस्तीवद्या छीनली सुभद्राको भी जबरन लेगया । विद्याके अभावसे मैं विद्याधरभी भूमिगोचरीके समान रहगया । अनेकशोकोंसे आकुलित हो मैं पुनः उसविद्याकेलिये यह मंत्र सिद्ध कररहा हूं बारह वर्षपर्यंत इस मंत्र के जपनेसे वह विद्या सिद्ध होगी एसा नैमत्तिकने कहा है । किन्तु बारहवर्ष बीतचुके अभीतक विद्या सिद्ध न हुई इसलिये मैं अब घर जाना चाहताहूं। ज्योंही कुमारने उस पुरुष के मुखसे ये समाचार सुने शीघही पूछा
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