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वेदांगका पाठी और धनी था सोमशर्मा था सोमशर्मा की अतिशय रूपवती दो स्त्रियां थीं प्रथम स्त्री सोमिल्ला और दूसरीका नाम सोमशर्मिका था । भाग्योदयसे सुंदरी सोमिल्ला के एक अतिशय रूपवान पुत्र उत्पन्न हुआ । सौमिल्लाको पुत्रवती देख सोमशर्मा उसपर अधिक प्रेम करने लगा और सोमशर्मिका की ओरसे उसका प्रेम कुछ हटने लगा ।
स्त्रियां स्वभाव से ही ईर्षा द्वेषकी खानि होती हैं यदि उनको कुछ कारण मिल जाय तब तो ईर्षा द्वेष करनेमें वे जरा भी नहि चूकती ज्योही सोमशार्मिकाको यह पता लगा कि मेरा पति मुझ पर प्रेम नहिं करता सोमिल्लाको अधिक चाहता है मारे क्रोध वह भवक उठी सोमिल्लासे मर्मभेदी वचन कहने लगी । हास्य और कलह करना भी प्रारम्भ कर दिया यहां तक कि सोमिल्ला के अहित करने में भी वह न डरने लगी ।
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वह उसी दिन से
उसी नगरीमें एक भद्र नामका बैल रहता था । भद्र सुशील और शांति प्रकृतिका धारक था इसलिए समस्त नगर निवासी उसपर बड़ा प्रेम करते थे । कदाचित् भद्र (बैल) ब्राह्मण सोमशर्मा के दरवाजे पर खड़ा था ब्राह्मणी सोमशर्मिकाकी दृष्टि उसपर पड़ी उसने शीघ्र ही अपनी सौत सोमिल्लाका बालक ऊपर अटारीसे बैलके सींगपर पटक दिया
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