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चारहवां सर्ग जिस परमोत्तमधर्मकी कृपा से मगधदेश के स्वामी महाराज श्रेणिक को अनुपमसुख मिला । पापरूपी अंधकारको सर्वथा नाश करनेवाले उस परमधर्मके लिये नमस्कार है। __महाराज श्रेणिक को जैनधर्म में जो संदेह थे सो सब हट गयेथे इसलिये भलेप्रकार जैनधर्मके पालक राज्यसंबंधी अनेक भोगभोगनेवाले शुभमार्गपर आरूढ़ राजा श्रेणिक और रानी चेलना सानंद राजगृहनगर में रहने लगे । कभी वे दोनों दंपती जिनेंद्रभगवानकी पूजा करनेलगे कभी मुनियों के उत्तमोत्तम गुणोंका स्मरण करने लगे । कभी उन्होने त्रेसठि महापुरुषोंके पवित्रचरित्र से पूर्ण प्रथमानुयोगशास्त्रका स्वाध्याय किया। कभी लोककी लंबाई चोड़ाई आदि बतलानेवाले करणानुयोगशास्त्रको वे पढ़नेलगे । कभी कभी अहिंसादि श्रावक और मुनियोंके चरित्रको बतलानेवाले चरणानुयोग शास्त्रका उन्होंने श्रवणकिया और कभी गुण द्रव्य
और पर्यायोंका वास्तविक स्वरूप बतलानेवाले स्यादस्ति स्यान्नास्ति इत्यादि सप्तभंगनिरूपक द्रव्यानुयोगशास्त्रों को विचारने लगे । इसप्रकार अनेकशास्त्रोंके खाध्यायमें प्रवीण धर्मसंपदाके धारक समस्तविपत्तियोंसे रहित रति और कामदेवतुल्य भोगभोगनेवाले बड़े २ ऋद्धिधारक मनुष्योंसे पूजित रतिजन्यसुखके भी भलेप्रकार आस्वादक वे दोनों दंपती
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