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। ३०७ ) कायगुप्ति नहिं हुई इसलिये मैंने राजमंदिरमें आहार न लिया आहार के न लेनेका और कोई कारण नहीं । इसरातिसे तीनों मुनिराजोंके मुखसे भिन्न २ कथाके श्रवणसे अतिशय संतुष्ट चित्त मोक्षसंबंधी कथाके परमप्रेमी महाराज श्रेणिक मुनिराजको नमस्कार कर राजमंदिर में गये । राजमंदिरमें जाकर सम्यग्दर्शनपूर्वक जैनधर्मधारण कर मुनिराजोंके उत्तमोत्तमगुणोंको निरन्तर स्मरणकरते हुये रानी चेलना और चतुरंगसेनाके साथ आनन्दपूर्वक राजमंदिरमें रहने लगे। इसप्रकार श्रीपद्मनाभभगवान्के पूर्वभवके जीव महाराज श्रेणिकक चरित्रमें कायगुप्ति कथाका वर्णन करने
वाला ग्यारहवां सर्ग समाप्त हुवा ।
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