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( ३०३.) उपदेश हलाहल विष सरीखा जान पड़ा। वह अपने मनमें ऐसा विचार करनेलगा यह मुनि बड़ा कृतघ्नी है । रोगकी निवृति का उपाय इसने शुभाशुभकर्मकी निवृत्ति ही वतलाई है मेरा नाम तकभी नहि लिया । इसमुनिके वचनोंसे यह साफ मालूम होता है हमने कुछ नहि किया । जो कुछ किया है कर्मकी निवृत्तिने ही कियाहै तथा इसप्रकार रौद्र विचार करते २ वैद्यने उसीसमय आयुइंध बांधलिया और आयुके अन्तमें मर कर वह वानरयोनिमें उत्पन्न होगया। ___कदाचित् विहार करते २ मुनिराज, जिसवनमें यह वानर रहता था उसीवनमें जापहंचे और पर्यंक आसन मांडकर, नासाग्रदृष्टि होकर, ध्यानकतान होगये । किसीसमय मुनिराज पर वंदरकी दृष्टि पड़ी । मुनिराजको देखते ही उसै जातिस्मरण होगया । जातिस्मरणके वलसे उसने अपने पूर्वभवका सब समाचार जानलिया । राजा श्रीकृष्णके सामने मुनिराजके उपदेशसे जो उसने अपना पराभव समझा था वह पराभव भी उसै उससमय स्मरण हो आया । और मारे क्रोधके उसपापीने पवित्र किंतु ध्यानरसमें लीन मुनि गुणसागरके ऊपर एक विशाल काष्ठ पटक दिया। उन्हें अनेकप्रकार पीड़ाभी देने लगा। किंतु मुनिराज जराभी ध्यानसे विचलित न हुए। .
चिरकालतक अनेक प्रयत्न करनेपरभी जब वंदरने देखा कि मुनिराज ममतारहित, समता रसौलीन, निर्मलज्ञानकेधारक,
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