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हलन चलन क्रियासे रहित, परमपद मोक्षपदके अभिलाषी, परम किंतु उत्कृष्ट धर्मध्यान और शुक्लध्यानके आचारणकरने वाले, ध्यानवलसे परम सिद्धि प्राप्तिके इच्छुक, पाषाण में उकलीहुई प्रतिमाके समान निश्चल, और हाथ पैरकी समस्त चेष्टाओंसे रहित हैं तो उसैभी एकदम वैराग्य होगया । कछ समय पहले जो उसके परिणामोंमें रौद्रता थी वही मुनिराजकी शांतमुद्राके सामने शांतिरूप में परिणत होगई । वह अपने दुकर्मकेलिये अधिक निंदा करनेलगा। मुनिराजपर जो काठ डाला था वह भी उसने उठाके एक ओर रख दिया । वह पूर्वभवमें वैद्य था इसलिये मुनिराज पर काष्ठपटकनेसे जो उनके शरीरमें घाव हो गये थे उत्तमोत्तम औषधियोंसे उन्हें भी उसने अच्छा करदिया । अव वह मुनिराजकी शुद्धहृदयसे भक्तिकर लगा और यह प्रार्थना करने लगा ।
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प्रभो ! अकारणदीनबंधो ! मेरे इनपापोंका छुटकारा कैसे होगा ? मैं अब कैसे इनपापोंसे वचूंगा ? कृपाकर मुझे कोई ऐसा उपाय बतावें जिससे मेरा कल्याण हो । मुनिराज परम दयालु थे उन्होंने वानरको पंच अणुव्रतका उपदेश दिया और भी अनेक उपदेश दिये । वानर ने भी मुनिराजकी अज्ञानुसार पंच अणुव्रत पालने स्वीकार करलिये अहंकार क्रोध आदि जो दुर्वासनां थीं उन्हें भी उसने छोड़दिया । और हरसमय अपने अविचारित कामके लिये पश्चात्ताप करने लगा । सेठि जिन
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