________________
शांति मिली । इसलिये जिनदत्त ! तुम्हीं बताओ भद्रक और जिनमती पर जो दोषारोपण कियागया था वह सत्य था या असत्य ? | जिनदत्तने कहा-- ____कृपानाथ ! वह दोषारोपण सर्वथा अनुचित था । विना विचारे किसीको भी दोष नहिं देना चाहिये जो लोग ऐसा काम करते हैं वे नराधम समझे जाते हैं। दीनबंधो ! मैं आपकी कथा सुन चुका अब आप कृपया मेरी भी कथा सुनें
इसीलोकमें एक पद्मरथ नामका नगर हैं। किसीसमय पद्मरथनगरमें राजा वसुपाल राज्य करता था । कदाचित् राजा वसुपालको अयोध्याके राजा जितशत्रुसे कुछ काम पड़गया इसलिये उसने शीघ्र ही एक चतुर ब्राह्मण उसके समीप भेज दिया। ब्राह्मण राजाकी आज्ञानुसार चला । चलते २ वह किसी अटवीमें जा निकला । वह अटवी वड़ी भयावह थी । अनेक क्रूर जीवोंसे व्याप्त थी । कहींपर वहां पानी भी नजर नहिं आता था । चलते २ यहभी थक चुका था । प्याससे भी अधिक व्याकुल होचुका था इसलिये . प्याससे व्याकुल हो वह उसी अटवीमें किसी वृक्षके नीचे पड़गया और मूर्छितसा होगया । भाग्यवश वहां एक वंदर आया । ब्राह्मण की वैसी चेष्टा देख उसै दया आगई । वह यह समझ कि प्याससे इसकी ऐसी दशा हो रही है, शीघ्र ही उसै एक विपुल जल से भरा तालाब दिखाया और एक ओर हट गया।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com