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कामदेव व्याप्त रहता है । मोक्षद्वारके रोकनेमें ये अर्गल ( बेड़ा ) हैं । स्वर्ग मार्गको भी रोकने वाली हैं । नरकादि गतियोंमें लेजाने वाली हैं दुष्कर्म करने में बड़ी साहसी हैं । इत्यादि अपने मनमें संकल्प निकल्प करता करता वह भद्र नामका बैल वहीं रहने लगा।
उसीनगरीमें कोई जिनदत्त नामका सेठि निवास करता था । जिनदत्त समस्त वणिकोंका सरदार और धर्मात्मा थी । जिनदत्त की प्रियभार्या सेठानी जिनमतो थी जिनमती परम धर्मात्मा थी शीलादि उत्तमोत्तम गुणोंकी भंडार थी। अति रूपवती थी । पति भक्ता एवं दान आदि उत्तमोत्तम कार्योंमें अपना चित्त लगाने वाली थी।
सेठि जिनदत्त और जिनमती आनन्दसे रहते थे। अचानक ही जिनमतीके अशुभ कर्मका उदय प्रकट हो गया । उस विचारीको लोग कहने लगे कि यह व्याभिचारिणी है । निरन्तर परपुरुषोंके यहां गमन करती है इसलिए वह मनमें अतिशय दुःखित होने लगी । उसै अति दुःखी देख कई एक मनुष्य उसके यहां आये और कहने लगे जिनमती ! यदि तुझे इस बातका विश्वास है कि मैं व्याभिचारिणी नहीं हूं तो तू एक काम कर तपा हुआ पिंड अपने हाथ पर रख । यदि तू व्याभिचारिणी होगी तो तू जल जायगी नहीं तो नहीं । नगर निवासियोंकी बात जिनमतीने मानली
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