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( २९७ ) चाहता था उसीसमय कोई ज्ञानसागर नामके मुनिराज उसके यहां आहारार्थ आगये। मुनिराजको देख गारदेवने अपना काम छोड़ दिया। मुनिराजको विनयपूर्वक नमस्कार किया। प्रामुकजलस उनका चरणप्रक्षालन किया । एवं किसी उत्तम काष्टासन पर बैठनकी प्रार्थना की । प्रार्थनानुसार इधर मनिराज तो काष्टासन पर बैठे और उधर एक नीलकंठ आया एवं आंख वचाकर उस पद्मरागमणिको लेकर तत्काल उड़ गया तथा मुनिराज आहार ले वनकी ओर चलदिये । ___मुनिराजको आहार देकर जव गारदेवको फुरसति मिली तो उसै मणिके साफ करनेकी याद आई । वह चट आंगनमें आया । उसै वहां मणि मिली नहिं इसलिये परदुःखी हो वह इसप्रकार विचारने लगा___मेरे घरमें सिवाय मुनिराजके दूसरा कोई नहिं आया यदि मणि यहां नहीं है तो गई कहां ! मुनिराजने ही मेरी मणि ली होगी और लेनेवाला कोई नहिं । तथा कुछसमय ऐसा संकल्पविकल्पकर वह सीधा वनको चलदिया और मुनिराजके पास
आकर माणका तकादा करताहुआ अनेक दुर्वचन कहने लगा। ____ जब मुनिराजने उसके ऐसे कटुक वचन सुने तो अपने ऊपर उपसर्ग समझ वे ध्यानारूढ़ होगये गारदेवके प्रश्नों का उन्होंने जवाब तक न दिया । किन्तु मुनिराजसे जवाब न पाकर मारे क्रोधके उसका शरीर भवक उठ। उस दुप्टको
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