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( २९९ ) पड़ते हैं। मेरी यह कथा सुन जिनदत्तने कहा।
कृपासिंधो ! गारदेवका वह काम सर्वथा निंदनीय था । अविचारित कामकरनेवालोंकी दशा ऐसी ही हुआ करती है नाथ ! मैं आपकी कथा सुन चुका कृपाकर आपभी मेरी कथा सुनें।
इसी पृथ्वीतलमें अनेक उत्तमोत्तम घरोंसे शोभित, देवतुल्य मनुष्योंसे व्याप्त, एक पलाशकूट नामका सर्वोत्तम नगर है। किसीसमय पलाशकूट नगरमें कोई रौद्रदत्तनामका ब्राह्मण निवास करता था । कदाचित् किसीकायवश रौद्रदत्तको एक विशालवनमें जाना पड़ा । यह वनमें पहुचाई था कि एक गैड़ा इसकी ओर टूटा । उससमय रौद्रदत्तको और तो कोई उपाय न सूझा समीपमें एक विशालवृक्ष खड़ा था उसीपर वह चढ़ गया । जिससमय गैड़ा उसवृक्षके पास आया तो वह शिकारका मिलना कठिन सभझ वहांसे चलदिया । और अपने विघ्नको शांत देख रौद्रदत्तभी नीचे उतर आया । वह वृक्ष अति मनोहर था। उसकी हरएक लकड़ी बड़े पायेदार थी। इसलिये उसै देख रौद्रदत्तके मुखमें पानी आगया । वह यह निश्चयकर कि इसकी लकड़ी अत्युत्तम है इसकी स्तंभ आदि कोई चीज वनवानी चाहिये, शीघ्र ही घर आया । हाथमें फरसा ले वह फिर वनको चला गया और बातकी बातमें वह वृक्ष काट डाला । कृपानाथ! आप ही कहै क्या आपत्तिकालमें रक्षाकरने
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