________________
( ३०० ) वाले उस वृक्षका काटना रौद्रदत्तकेलिये योग्य था ! मैंने कहा
जिनदत्त ! सर्वथा अयोग्य था। रौद्रदत्तको कदापि वह वक्ष काटना नहि चहिये था जो मनुष्य परकृत उपकारको नहिं मानते वे नितरां पापी गिने जाते हैं, कृतनी मनुष्योंको संसारमें अनेक वेदना भोगनी पड़ती हैं । मैं तुम्हारी कथा सुन चुका अव मैं भी तुम्हें एक अत्युत्तम कथा सुनाता हूं तुम ध्यान पूर्वकसुनो
इसी पृथ्वीतलमें उत्तमोत्तम तोरण पताका आदिसे शोभित समस्त नगरियों में उत्तम कोई दारावती नामकी नगरी है। किसीसमय दारावतीके पालक महाराज श्रीकृष्ण थे । महाराज श्रीकृष्ण परम न्यायी थे। न्याय राज्यसे चारो ओर उनकी कीर्ति फैली हुई थी और सत्यभामा रुक्मिणी आदि कामिनियोंके साथ भोग भोगते वे अनंदसे रहते थे । ____ कदाचित् राजसिंहासनपर वैठि वे अनंदमें मग्न थे इतने ही में एक माली आया उसने विनय पूर्वक महाराजको नमस्कार किया, और उत्तमोत्तम फल भेंट कर वह इसप्रकार निवेदन करने लगा।
प्रभो ? प्रजापालक ? एक परम तपस्वी वनमें आकर विराजे हैं । मालीके मुखसे मुनिराजका आगमन सुन महाराज श्रीकृष्णको परमानंद हुवा । वे जिस कामको उससमय कर रहे थे उसे शीघ्र ही छोड़ दिया । उचित पारितोषिक दे मालीको
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com