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( २९३ ) चू. फू. फू. शब्द करते हुवे घोर युद्ध करने लगा । अंतमें अपने पराक्रमसे नोलाने विजय पालो और उस सर्पराजको तत्काल यमलोकका रास्ता बता दिया तथा वह वालकके पास बैठिगया।
कपिला अपना कार्य समाप्त कर घर आई । कपिलाके पैर की आहट सुन नोला शीघ्र ही कपिलाके पास आया और कपिलाके पैरोंमें गिर उसकी मिन्नत करनेलगा। नोलेका सर्वांग उससमय लोहू लुहान था इसलिये ज्योंही कपिलाने उसै देखा 'इसने अवश्य मेरे पुत्रको मार कर खाया है यह समझ' मारे क्रोधके उसका शरीर भवक उठा और विना विचारे उस दीन नोलेको मारे मूसलोंके देखते २ यमपुर पहुंचा दिया। किंतु ज्योही वह वालकके पास आई । और ज्योंही उसने बालकको सकुशल देखा उसके शोकका ठिकाना न रहा । नोलेकी मृत्यु से उसकी आखोंसे आसुओंकी झड़ी लग गई और माथा धुनने लगी। जिनदत्त ! कहो उस ब्राह्मणीका वह अविचारित कार्य उत्तम था या नहिं ? मेरे ऐसे वचन सुन जिनदत्तने कहा
कृपानाथ ! ब्राह्मणीका वह काम सर्वथा अयोग्य था। विना विचारे जो मदान्ध हो काम करपाड़ते हैं उन्हें पीछे अधिक पछिताना पड़ता है। मैं भी पुनः आपको कथा सुनाता हूं आप घ्यानपूर्वक सुनिये
इसी द्वीपमें एक विशाल बनारस नामकी उत्तम नगरी
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