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ज्योंहीं ब्राह्मणने विपुल जलसे भरा तालाब देखा उसके आनंदका ठिकाना न रहा वह शीघ्र उसमें उतरा अपनी प्यास बुझाई और इसप्रकार विचार करने लगा
यह अटवी विशाल अटवी है । शायद आगे इसमें पानी मिले या न मिले इसलिये यहीं से पानी ले चलना ठीक है । मेरे पास कोई पात्र है नहीं इसलिये इस बंदरको मार कर इसकी चमड़ीका पात्र बनाना चाहिये । वस फिर क्या था ? विचारके साथ ही उस दुष्टने शीघ्र ही उस परोपकारी वंदरको मार दिया और उसकी चमड़ी में पानी भरकर अयोध्याकी ओर चल दिया । कृपानाथ ! अब आप ही कहैं क्या उस दुष्ट ब्राह्मणका परोपकारी उसबंदर के साथ वैसा बर्ताव उचित मैने कहा
था ?
सर्वथा अनुचित | वास्तव में वह ब्राह्मण बड़ा कृतघ्नी था । उसै कदापि उस परमोपकारी वंदर के साथ वैसा बर्ताव करना उचित न था ! जिनदत्त । तुम निश्चय समझो जो पापी मनुष्य किये उपकारको भूल जाते हैं संसार में उन्हें अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं कोई मनुष्य उन्हें अच्छा नहि कहता । अब मैं भी तुम्हें एक कथा सुनाता हूं तुम ध्यान पूर्वक सुनो
इसी जंबूद्वीपमें एक कौशांबी नामकी विशाल नगरी है। कौशांबी नगरीमें कोई मनुष्य दरिद्र न था सब धनी सुखी एवं अनेकप्रकारके भोग भोगनेवाले थे । उसी नगरी में
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