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( २९४ ) है । किसी समय बनारस में एक सोमशर्मा नामका ब्राह्मण निवास करता था सोमशर्माकी स्त्रीका नाम सोमा था सोमा अतिशय व्यभिचारिणी थी । पतिसे छिपाकर वह अनेक दुष्कर्म किया करती थी । किंतु अपने मिष्टवचनों से पतिको अपने दुष्कमका पता नहि लगने देती थी । और बनावटी सेवा आदि कार्यों से उसे सदा प्रसन्न करती रहती थी
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कदाचित सोमशर्मातो किसी कार्यवश बाहिर चलागया और सोमा अपने यार गोपालोंको बुलाकर उनके साथ सुख पूर्वक व्यभिचार करने लगी । किन्तु कार्य समाप्त कर ज्योंही सोमशर्मा घर आया और ज्योंही उसने सोमाको गोपालोंके साथ व्यभिचार करते देखा उसै परम दुःख हुआ । वह एकदम घरसे विरक्त होगया । एवं बांसकी लाठीमें कुछ सोना छिपाकर तीर्थ यात्राकोलिये निकल पड़ा ।
मार्गमें वह कुछ ही दूर पहुंचा था अचानक ही उसकी एक मायाचारी बालकसे भेंट हो गई। वालकने विनयपूर्वक सोमशमाको प्रणाम किया । उसका शिष्य वनगया एवं यह विचार कि इस सामशर्मा के पास धन है वह सोमशर्मा के साथ चलभी दिया ।
मार्गमें चलते २ उन दोनों को रात होगई इसलिये वे दोनों किसी कुम्हार के घर ठहर गये । वहां रात विताकर सवेरे चलभी दिये । चलते समय बालक महादेवके शिरसे कुम्हार
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