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( २८७ ) से अबला नहिं । जिससयम ये कर काम करनेका बीड़ा उठा लेती हैं तो उसे तत्काल कर पाड़ती हैं । और अपने कटाक्ष पातोंसे बड़े २ बीरोंको भी अपना दास बना लेती है । चाहे अतिशय उप्ण भी अनि शीतल होजाय शीतल भी चन्द्रमा उप्ण होजाय । पूर्व दिशामें उदित होनेवाला सूर्य भी पश्चिम दिशामें उदित हो जाय किन्तु स्त्रियां शूठ छोड़ कभी भी सत्य नहिं बोल सकतीं। हाय जिससमय ये दुष्ट स्त्रियां पर पुरुषमें आसक्त हो जाती हैं उससमय अपनी प्यारी माता को छोड़ देती हैं। प्राण प्यारे पुत्रकी भी परवा नहिं करतीं परम स्नेही कुटुबीजनोंका भी लिहाज नहिं करती। विशेष कहां तक कहा जाय अपनी प्यारी जन्मभूमिको छोड़ परदेशमें भी रहना स्वीकार कर लेती हैं। ये नीच स्त्रियां अपने उत्तम कुलको भी कलंकित बना देती है । पति आदिसे नाराज हो मरने का भी. साहस कर लेती हैं । और दूसरोंके प्राण लेनेमें भी जरा नहीं चूकतीं । अहा !!! जिन योगीश्वरोंने स्त्रियों की वास्तविक दशा विचार कर उनसे सर्वथाकेलिए सवन्ध छोड़ दिया है स्त्रियोंकी बात भी जिनकेलिए हलाहल विष है वे योगीश्वर धन्य हैं और वास्तविक आत्मस्वरूपके जानकार हैं । हाय !!! ये स्त्रियां छल कपट दगाबाजी की खानि है । समस्त दोषोंकी भंडार हैं । असत्य बोलनेमें बड़ी पंडिता है। विश्वासके अयोग्य हैं । चौतर्फा इनके शरीर में
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