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( २८३ ) कृपया उसे ध्यान पूर्वक सुनैं । ___ इसी लोकमें एक अतिशय मनोहर एवं प्रसिद्ध बनारस नामकी नगरी है । किसीसमय बनारसमें कोई वसुदत्त नामका सेठि निवास करता था। वसुदत्त उत्तमदर्जेका व्यापारी था धनी था सुवर्णनिर्मित मकानमें रहता था और बड़ा तुंदिल ( बड़ी थोदिका धारक ) था । वसुदत्तकी प्रिय भार्याका नाम वसुदत्ता था वसुदत्ता बड़ी चतुरा थी । विनयादि गुणोंसे अपने पतिको संतुष्ट करने वाली थी और मनोहरा थी। कदाचित् उसी नगरीमें एक चोर किसीके घर चोरीके लिये गया । उससमय उस घरके मनुष्य जग रहे थे इसलिये चोरको उन्होंने देख लिया। देखते ही चोर भगा। भागते समय उसके पछि बहुतसे मनुष्य थे इसलिये घबड़ा कर वह सेठि सुभद्रदत्तके घरमें घुस पड़ा और सुभद्रदत्तसे इसप्रकार विनय वचन कहने लगा।
कृपानाथ ! मुझै वचाइये मैं मरा । चोरके ऐसे वचन सुन सुभद्रदत्तको दया आ गई। उसने चोरको शीघ्र ही अपने कपड़ोंमें छिपा लिया 1 कोतवाल आदि सेठिजीके पास आये सेठिजीसे चोरकी बाबत पूछा भी तो भी सेठिजीने कुछ जवाब न दिया । जहां तहां सबोंने चोर देखा कहीं न दीख पड़ा किंतु सेठिजीकी बड़ी थोंदिके नीचे ही वह छिपा रहा । इसलिये वे सबके सब पछिको लोट गये।
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