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२.८० ) अविचारित कार्यकोलिये बार बार पश्चात्ताप करने लगे । और अपनी मूर्खताकेलिये सहस्र बार धिक्कार देने लगे |
हे जिनदत्त ! यह तुम निश्चय समझो जो हतबुद्धि मनुष्य विना विचारे काम कर पाड़ते हैं उन्हें पीछे पछताना पड़ता है | बिना समझे काम करनेवाले मनुष्य निंदा भाजन बन जाते हैं । अब तुम्हीं इस बातको कहो राजाने जो वह आम विना विचारे कटवा दिया था वह काम क्या उसका उत्तम था ! मुझसे यह कथा सुन जिनदत्त ने कहा
नाथ ? राजाका वह कार्य सर्वथा वे समझ का था । मैं आप को एक दूसरी कथा सुनाता हूं आप ध्यान पूर्वक सुनें ।
किसीसमय किसी गंगा किनारे एक विश्वभूति नामका तपस्वी रहता था कदाचित् एक हाथीका बच्चा नदी के प्रवाह में बहा चला जाता था । तपस्वीकी अचानक ही उसपर दृष्टि पड़ गई । दयावश उसने शीघ्र ही उस हाथी के बच्चे को पकड़ लिया । वह वच्चा शुभ लक्षण युक्त था इस लिए वह तपस्वी उत्तमोत्तम फल आदि खवाकर उसका पोषण करने लगा और चन्द रोजमें ही वह बच्चा एक विशाल हाथी बनगया ।
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कदाचित् किसी राजाकी दृष्टि उस हाथी पर पड़ी उसै शुभ लक्षणयुक्त देख राजाने उसे खरीद लिया और अपने घर लेजाकर सिखानेकेलिए किसी महावत की सुपुर्द
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