________________
( २७९ ) किसीसमय एक गृद्धपक्षी आकाशमार्गसे किसी एक जहरीले सर्पको मुखमें दवाये चला जारहा था । भाग्यवश एक फलपर सर्पकी विष बूंद गिरगई । विषकी गर्मीसे वह फलभी जल्दी पकगया। मालीने आनंदित हो फल तोड़लिया और उसै राजाकी सभामें जाकर भेंट कर दिया। राजा विश्वसैनको फल देख परमानद हुआ । उन्होंने मालीको उचित पारितोषिक दे संतुष्ट किया एवं अपने प्रिय पुत्रको बुलवा कर उसे फल खाने की आज्ञा दे दी।
आमफल विष बूंदसे विषमय होचुका था इसलिए ज्योंही कुमारने फल खाया खाते ही उसके शरीरमें विष फैल गया बातकी बातमें वह मूर्छित हो जमीन पर गिर गया और उसकी चेतना एक ओर किनारा कर गई । अपने इकलोती और प्रियपुत्र वसुदत्तकी यह दशा देख राजा विश्वसेन वेहोश हो गये उन्होंने वह सब कार्य आम फलका जान तत्काल उसे कटवाने की आज्ञा दे दी एवं पुत्रकी रक्षार्थ शीघ्र ही राजवैद्य को बुलवाया।
राजवैद्यने कुमारकी नाड़ी देखी । नाड़ीमें उसे विष विकार जान पड़ा इसलिए उसने शीघ्र ही उसी आम्र फलका एक फल मंगाया और कुमारको खिलाकर तत्काल निर्विष कर दिया ! राजा विश्वसेनने जब आम्र फलका यह माहात्म्य देखा तो उन्हें बड़ा शोक हुआ वे अपने उस
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com