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( २७८ ) सार्थवाहके ऐसे विनयवचनोंसे राजा विश्वसेन अति प्रसन्न हुए । उनका प्रेम रानी वसुकांतामें अधिक था इसलिये उन्होंने यह समझ, कि विना रानीके मेरा नीरोग होना किसकामका ? चट रानीको वीज देदिया रानीका प्रेम पुत्र वसुदत्त पर अधिक था इसलिये उसने उठा वसुदत्तको देदिया । जव वह आमका बीज वसुदत्तके हाथमें आया तो वे उसै जान न सकै और उनका प्रेम पितापर अधिक था इसलिये उन्होंने शीघू ही वह बीज पिताको देदिया और विनयसे यह प्रार्थना की कि पूज्यपिता ! यह क्या चीज है कृपाकर मुझे वतावे ? वमुदत्त के ऐसे वचन सुन राजा विश्वसेनने कहा। ___प्यारे पुत्र ! अमृतफल-आम पैदा करने वाला यह आम का बीज है । इससे जो फल उत्पन्न होता है उससे समस्त रोग शांत होजाते हैं । यह फल हमैं सार्थबाहने भेंट किया है तथा ऐसा कहते कहते उन्होंने शीघ्र ही किसी चतुर माली को बलाया और स्त्री पुत्र आदिके नीरोगपनकी आशासे किसी उत्तम क्षेत्रमें बोनेकोलिए उसे शीघ्र ही आज्ञा देदी ।
राजाकी आज्ञानुसार मालीने उसे किसी उत्तम क्षेत्रमें वोदिया। प्रतिदिन स्वच्छ जल सींचना भी प्रारंभ कर दिया । कुछ दिन बाद माली का परिश्रम सफल होगया। वह वृक्ष उत्तमोत्तम फलों से लदवदा गया एवं वह प्रतिदिन माली को आनंद देने लगा।
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