________________
aamananews
www
( २७४ ) प्रभो आपकी आज्ञानुसार मैं कथा सुनाता हूं आप ध्यान पूर्वक सुनं और मुझे क्षमा करें ।
इसी जंबूद्वीपमें एक अतिशय मनोहर बनारस नामकी नगरी है । बनारस नगरीका स्वामी जो नीति पूर्वक प्रजाका पालक था राजा जितमित्र था। राजा जितभित्रके यहां एक अगदंकार नामका राजवैद्य था । उसकी स्त्री धनदत्ता अतिशय रूपवती एवं साक्षात् कुवेरकी स्त्रीके समान थी। राज्यकी ओरसे वैद्य अगदंकारको जो आजीविका दी जाती थी उसीसे वह अपना गुजारा करता था एवं इन्द्र के समान उत्तमोत्तम भोग भोगता वहां आनंदसे रहता था। वैद्यवर अगदंकारक अतिशय सुंदर दो पुत्र थे। प्रथम पुत्र धनमित्र था।
और दूसरेका नाम धनचंद्र था। दोनों भाई माता पिताके लाडले अधिक थे इसलिए अनेक प्रयत्न करने पर भी वे फूटा अक्षर भी न पढ़ सके । रोग आदिकी परीक्षाका भी उन्हें ज्ञान न हुआ । एवं वे निरक्षर भट्टाचार्य होकर घर में रहने लगे।
कुछ दिन बाद अशुभकर्मकी कृपासे वैद्यवर अगदंकार का शरीरांत हो गया । वे धनमित्र और धनचन्द्र अनाथ सरीखे रह गये । राजकी ओरसे जो आजीविका वंधी थी राजाने उसे भी उन्हें मूर्ख जान छनिली। इसलिए उन दोनों भाइयोंको और भी अधिक दुःख हुआ। एवं आतिशय
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com