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तुम्हें चाहिये उतना लेजाइये । तुंकारीके ऐसे दयामय वचन सुन जिनदत्त अति प्रसन्न हुआ। अटारी पर चढ़कर उसने चट एक घड़ा उठाकर अपने कंधेपर रखलिया और चलने लगा। ____घड़ा लेकर जिनदत्त कुछ ही दूर गया था अचानक ही उसके कंधेसे धड़ा गिर गया । और उसमें जितना तेल था सब फैलकर मिट्टीमें मिल गया । तेलको इसप्रकार जमीन पर गिरा देख जिनदत्तका शरीर मारे भयके कप गया। वह बिचारने लगा हाय !!! वड़ा अनर्थ होगया ? बड़ी कठिनतासे यह तेल हाथ आया था सो अब सर्वथा नष्ट होगया । जाने अव मुझे तेलं मिलैगा या नहिं ? । अहा !!! अब तुंकारी मुझ पर जरूर नाराज होगी मैंने बढ़ा अनर्थ किया तथा इसप्रकार अपने मनमें कुछसमय संकल्प विकल्पकर वह फिर तुकारीके पास गया । डरते डरते उसे सब हाल कह सुनाया और तेलके लिये फिरसे निवेदन किया । तुकारी परम भद्रा थी उसने नुक्सान पर कुछ भी ध्यान न दिया । किं तु शांतिपूर्वक उसने यही कहा।
प्रिय जिनदत्त ! यदि वह तेल फैल गया तो फैल जाने दे मेरे यहां बहुत तेल रक्खा है जितना तुझै चाहिये उतना लंजा और मुनिराजकी पीड़ा दूर करनेका उपाय कर । ब्राह्मणी के ऐसे उत्तम किंतु संतोषप्रद वचन सुन जिनदत्तका सारा भय दूर होगया । ब्राह्मणीकी आज्ञानुसार उसने शीघ्र ही दूसरा घड़ा
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