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( २५७ ) इसके अतिरिक्त दूसरा तुम्हें कोई कष्ट न भोगना पड़ेगा । शिव शर्माके ऐसे वचन सन और उस कष्टको कुछ कष्ट न समझ सोमशर्म ने उसके साथ विवाह करना स्वीकार करलिया। एवं मेरे पिताने तत्काल ज्वारियोंका कर्ज पटादिया और आनंद पूर्वक उसै अपने घर ले आये । कुछ दिन वाद किसी उत्तम मुहूर्तमें सोमशर्माके साथ मेरा विवाह होगया। मैं उसके साथ आनंद पूर्वक भोग भोगने लगी । वह मुझसे सदा तुमका व्यवहार रखता था । इसलिये मुझे परम संतोष रहता था । एवं हम दोनों दंपतीका आपसमें स्नेह वढ़ता ही चल जाता था। ____ कदाचित् सोमशर्मा किसी कार्यवश बाहर गये । उन्हें वहां कोई ऐसा स्थान दखिपड़ा जहां बहुतसे नृत्य आदि तमाशे होरहे थे। वे चट वहां बैठि गये और तमाशा देखते देखते उन्हें अपने समयका भी कुछ खयाल न रहा। जब बहुतसी रात्रि बीत चुकी । खेल भी प्रायः समाप्त होने पर आचुका । उन्हें घरकी याद आई। वे शीघू अपने घरके द्वारपर आकर इसप्रकार पुकारने लगे।
प्राणवल्लभे ! कृपाकर आप किवाड़ खोलें । मैं दरवाजे पर खड़ा हूं। मैं उससमय अर्धनिद्रित थी इसलिये दो एक तो मैं अवाज उनकी न सुन सकी किंतु जब वे स्वभावसे वार वार पुकारने लगे तो मैंने उनकी आवाज तो सुनली परंतु ये इतनी रात तक कहा रहे क्यों अपने समय पर अपने घर न आये'
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