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( २६१ ) देवीने मेरी रक्षा की । तुम निश्चय समझो जो मनुष्य अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रहते हैं देवभी उनके दास बन जाते हैं और समस्त दुःख उनके एक ओर किनारा करजाते हैं । ___जिससमय देवी मुझे अपने घर लेगई थी उससमय मेरे पास कोई वस्त्र न था इसलिये उसदेवीने मुझ एक ऐसा कंबल जो अनेक जूवां कड़िी आदि जीवोंसे व्याप्त था। जगह २. उसमें रक्त पीव कीचड़ लगी थी देदिया और मुझे वही रहनेकी आज्ञा दी । मैंने भी कंबल लेलिया और प्रबलपापो दयसे उस क्षेत्रमें उत्पन्न कादों आदि धान्योंको देखती हुई रहने लगी । इतने परभी मेरे दुःखोंकी शांति न हुई प्रतिपक्षमें वह देवी मेरे शिरके केशोंका मोचन करती थी और अपने वस्त्रके रंगनेकेलिये उससे रक्त निकाला करती थी । रक्त निकालते समय मेरे मस्तकमें पीड़ा होती थी इसलिये वह देवी उस पीडाको लाक्षामूल तेल लगाकर दूर करती थी। ___कदाचित् मेरा परमस्नेही भाई यौवनदेव उज्जयनीके राजाने किसी कार्यवश वडी विभूतिके साथ राजा पारासर के पास भेजा । वह अपना कार्य समाप्त कर उज्जयनी लोट रहा था । मार्गमें कुछ समयकलिये जिसवनमें मैं रहती थी उसी वनमें वह ठहर गया । और मुझ अभागिनी पर उसकी दृष्टि पड़ गई । ज्योंही उसने मुझे देखा बड़े स्नेहसे मुझे अपने हृदय लगाया । और बड़ी कठिनतासे उसदेवकि चंगुलसे निकाल
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