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दिया । और मैं क्रोध पूर्वक माता पिताके घरमें रहने लगी । कदाचित् शुशुभ्र नामके वनमें एक परम पवित्र मुनिराज जिनका नाम गुणसागर था, आये। मुनिराजका आगमन समाचार सुन राजा आदि समस्त लोग उनकी बंदनार्थ गये । मुनिराज के पास पहुचंकर सबने भक्तिभावसे उन्हें नमस्कार किया । और सबके सब उनके पास भूमि में बैठ गये। उनसबोंको उपदेश श्रवणकेलिये लालायित देख मुनिराजने उपदेश दिया । उपदेश सुनकर सर्वोको परम संतोष हुवा । और अपनी सामर्थ्य के अनुसार यथायोग्य सबोंने व्रतभी धारण किये। मैं भी मुनिराजका उपदेश सुन रही थी मैंने भी श्रावक व्रत धारण कर लिये । किंतु व्रत धारण करते समय तुंकार शब्दसे उत्पन्न क्रोधका त्याग नहीं किया था । मुनिराजके उपदेशके समाप्त होजाने पर सबलोग नगर में आगये । मैं भी अपने घर आगई। मेरे भाई जैसे आठ मदयुक्त थे उनके संसर्गसे मै भी आठ मदयुक्त होगई । जिस बात की मैं हठ करती थी उसे पूरा करके मानती । थी । यहां तक कि मुझे हठीली जान मेरा कोई विवाह भी नहीं करता था इसलिये जिससमय मै युवती हुई तो मेरे पिताको परम कष्ट होने लगा | मेरी विवाह सम्बंधी चिंता उन्हें रात दिन सताने लगी ।
उसीसमय एक सोमशर्मा नामका ब्राह्मण था । सोमशर्मा पक्का ज्वारी था । कदाचित् सोमशर्मा जूवा खेल रहा था । उसने
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