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किसी वाजूपर अपना सब धन रखदिया । और तीव्र दुर्भा - ग्योदयसे उसै वह हार गया । सब धनके हारने पर जब ज्वारियोंने सोमशर्मा से अपना धन मांगा तो वह न देसका इसलिये ज्वारियोंने उसै किसी वृक्षसे बांधदिया । और बुरी तरह लात डंडे घूसों से मारने लगे । शिवशर्मा के कान तक भी यह बात पहुंची वह भगता भगता शीघ्र ही सोमशर्माक पास गया और उससे इसप्रकार कहने लगा
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प्रिय ब्राह्मण ! यदि तुम मेरी पुत्रीके साथ विवाह करना स्वीकार करो तो मैं इन ज्वारियोंका कर्जा पटादू और तुम्हें इनके चंगुल से छुटालू । बस हे श्रेष्ठिन् ! मेरे पिताके ऐसे हितकारी वचन सुन सोमशर्माने कहा --
ब्राह्मणसरदार ! आपकी कन्या में ऐसा कोनसा दुर्गुण है जिससे उसकेलिए कोई योग्य वर नहीं मिलता और पापी, ज्वारी, दुष्टोंद्वारादंडित, मुझ न कुछ पुरुषके साथ उसका विवाह करना चाहते हैं। सोमशर्मा के ऐसे बचन सुन शिवशर्माने कहाप्रियवर ! मेरी पुत्रीमें रूप आदिका कुछभी दोष नहीं है वह अतिशय रूपवती सुंदरी है । अनेक कलाकौशलोंकी भंडार है । किंतु उसमें क्रोधकी कुछ मात्रा अधिक हैं । वह कार शब्दको सहन नहि करसकती | वस जो कुछ दोष है सो यही है । तुम अपने जीवन सुख भोगनेके लिये यही काम करना कि हम तुम का ही व्यवहार रखना । मैं तूका न हिं
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