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( २५३ ) अपने घर पहुंचा घड़ा रखकर वह फिर तुंकारके घर आया और विनयपूर्वक इसप्रकार निवेदन करनेलगा।
प्रियवहिन ! तू धन्य है । तेरा मन सर्वथा धर्ममे दृढ़ है । तू क्षमाकी भंडार है। मैंने आज तक तेरे समान कोई स्त्रीरत्न नहि देखा।जैसी क्षमा तुझमें है संसारमें किसीमें नहीं । मुझसे बराबर तीन घड़े फूट गये । तेरा बहुत नुक्सान होगया तथापि तुझे जरा भी क्रोध न आया । जिनदत्तके ऐसे प्रशंसा युक्त किन्तु उत्तम वचन सुन तुंकारीने कहा ।
भाई जिनदत्त ! क्रोधका भयंकर फल में चख चुकी हूं। इसलिये मैंने क्रोध कुछ शांत करदिया है मैं जरा जरासी बात पर क्रोध नहिं करती । तुंकारीके ऐसे वचन सुन जिनदत्तने कहा
बहिन ! तुम क्रोधका फल कब चख चुको हो कृपाकर मुझै उसका सविस्तर समाचार सुनाओ । इस कथाके सुननेकी मुझे विशेष लालसा हैं । जिनदत्तके ऐसे बचन सुन तुकारीने कहा। ___ भाई ! यदि तुझे इस कथाके सुननेकी अभिलाषा है तो मैं कहती हूं तू ध्यानपूर्वक सुन । ____ इसी पृथ्वीतलमें आनंदित जनोंसे परिपूर्ण, मनोहर, एवं आनंदका आकर एक आनंद नामका नगर है । आनंद नगरमें अक्षय संपत्तिका धारक कोई शिवशर्मा नामका ब्राह्मग निवास
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