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इसलिये तुम्हें लाक्षामूल रसके लिये प्रयत्न करना चाहिये । वैद्यराजके ऐसे बचन सुनकर जिनदत्तने कहा वैद्यराज ! कृपया शीघ्र कहैं लाक्षामूल तेल कहां कैसे मिलेगा ? मैं उसके लिये प्रयत्न करूं । वैद्यराजने कहा ।
इसी नगरमे भट्ट सोमशमो नामका ब्राह्मण निवास करता है। लाक्षामूल तेल उसीके यहां मिल सकता है और कहीं नहीं तुम उसके घर जाओ और शीघ्र वह तेल लेआओ वैद्यराजके ऐसे वचन सुन जिनदत्त शीघ्र ही भट्टसोमशर्माके घर गया । वहां उसकी तुकारी नामकी शुभ भायाको देखकर और उसै वहिन इस शब्दसे पुकार कर यह निवेदन करने लगा।
वहिन ! मुनिवर जिनपालका आधामस्तक किसी दुष्टने जलादिया है। उनके मस्तकमें इससमय प्रवल पीड़ा है कृपा कर मुनिपीड़ा की निवृत्तिके लिये मूल्य लेकर मुझे कुछ लाक्षा मूल तेल देदीजिये । जिनदत्तकी ऐसी प्रियवोली सुन तुंकारी अति प्रसन्न हुई । उसने शीघ्र ही जिनदत्तसे कहा ।
प्रिय जिनदत्त ! यदि मुनि पीड़ा दूरकरनेके लिये तुम्हें तेलकी आवश्यकता है तो आप लेजाइये मैं आपसे कीमत न लूंगी । जो मनुष्य इसभवे जीवोंको औषधि प्रदान करते हैं परभवमें उन्हे कोई रोग नहि सताता । आप निर्भय हो मेरी अटारी चले जाइये । वहां बहुत से घड़े तेलके रक्खें हैं जितना
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