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( २५४ ) उपसर्ग हुवा है ! यह बात दारा नगरनिवासी सज्जनोंका मानो जतलाता हुवा सूर्य प्राची दिशामें उदित होगया । जिनेंद्र रूपी सूर्यके उदयसे जैसा मिथ्यात्व अंधकार तत्काल विलयको प्राप्त होजाता है और भव्योंके चित्तरूपी कमल विक सित होजाते हैं । उसीप्रकार सूर्यके उदयसे गाढ़मी अंधकार बांतकी बातमें नष्ट . होगया। जहां तहां सरोवरामें कमलभी खिलगये । उससमय रातभरके वियोगी चकवा चकवी सूर्योदय से . अति आनंदित हुवे । और परम्पर प्रेमालिंगन कर अपनेको धन्य समझने लगे। किंतु रात्रिमें अपनी प्राणण्यारियोंके साथ क्रीड़ा करनेवाले कामीजन अति दुःख मानने लगे
और बारबार सूर्यकी निंदा करने लगे । असली पूछिये तो सूर्य एकप्रकारका उत्तमसाधु है क्योंकि साधु जिसप्रकार भव्य जीवोंको उत्तममार्गका दर्शक होता है सूर्यभी पथिकोंको उत्तम मार्गका दर्शक है । साधु जैसा भव्यजीवांके अज्ञान अंधकारको दूर करता है सूर्यभी उसीप्रकार दूर करनेवाला है । साधु जिस प्रकार जीव अजीव आदि पदाथाका विचार करता है उनके साथ संबंध रखता है । उसीप्रकार सूर्यभी अपनी किरणोंसे समस्तपदार्थोसे संबंध रखता है । देदीप्यमान ' सूर्यके तेजके सामने चंद्रमा उससमय सूखे पत्ते के समान जान पड़ने लगा। और तारागण तो लापता होगये ? श्मसानभूमिके पास एक वाग था इसलिये उससमय एक माली फूल तोड़नेके लिए वहां आया
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