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तुझे अनेकवार नरक में जाकर ये दुःख भोगने पड़े हैं । जब जब तू एकेंद्रिय द्वींद्रिय आदि विकलेंद्रिय योनियों में रहा है उससमय भी तूने अनेक दुःख भोगे हैं । अनेकवार तू निगोदा में भी गया है। और वहांके दुःख कितने कठिन हैं यह बात भी तू जानता है । तुझे इससमय जराभी विचलित नहीं होना चाहिये | भाग्य वश यह नरभव मिला है । प्रसन्न चित्त होकर तुझे व्रतसिद्धिकेलिये परीषह सहिनी । चाहिये ध्यान रख ! परीषड् सहनकरनेसे ही व्रतसिद्धि और सच्चा आत्मीय सुख मिल सकता है |
राजन् ? मैं तो इसप्रकार अनित्यत्व भावना भा रहा था । मुझे अपने तन बदनका भी होश हवास न था । अचानक ही जव अग्नि जोरसे बलने लगी तो मेरे मस्तककी नसें भी सकुड़ने लगीं । मेरे मस्तकपर रहा कपाल बेहदरीति से हिलने लगा और भलीभांति कौलिक द्वारा डाटे जानेपर तत्काल जमीनपर गिर गया। जो कुछ उसमें दूध चावल आदि चीजें थीं मिट्टी में मिलगईं और शीघ्रही अग्नि शांत होगई ।
वस फिर क्या था ? ज्योंही उस कौलिकने यह दृश्य देखा मारे भयके उसके पेटमें पानी होगया । वह यह जान कि मंत्र मुझपर कुपित होगया है वहांसे तत्काल घर भगा और शीघ्र ही अपने घर आगया ।
कुछ समय बाद रात्रिमें मुर्देके धोखे से मुनिराज पर घोर
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