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जान तत्काल उसने मेरे मस्तकपर एक चूल्हा रखदिया एवं किसी मृतकपाल में दूध और चावल डालकर, चूल्हे में अग्नि वालकर वह खीर पकाने लग गया । वस फिर क्या था ? मंत्रबादी तो यह समझ कि कव जल्दी खीर पके और कब जल्दी मंत्र सिद्ध हो' बड़ी तेजीसे चूल्हे में लकड़ी झोंककर आग वालने लगा | और आगबलनेसे जब मुझे मस्तक और मुखमें तीव्र वेद जान पड़ी तो मैं कर्म रहित शुद्ध आत्माका स्मरणकर इस प्रकार भावना भा निकला ---
रे आत्मन् ? तुझे इससमय इसदुःखसे व्याकुल न होना चाहिये । तूने अनेकवार भयंकर नरक दुःख भोगे हैं। नरक दुःखोंके सामने यह अग्निका दुःख कुछ दुःख नहीं | देख ! नरक में नारकियोंको क्षधा तो इतनी अधिक है कि यदि मिले तो वे त्रिलोकका अन्न खा जाय किंतु उन्हें मिलता कणमात्रभी नहीं इसलिये वे अतिशय क्लेश सहते हैं । वहां पर नारकियों को गरम लोहे की कढ़ाइयोंमें डाला जाता है उनके शरीरके खंड किये जाते हैं उससमय उन्हें परम दुःख भोगना पड़ता है । हजार विच्छुओं के काटनेसे जैसी शरीरमें अग्नि भैराती है उसी प्रकार नरकभूमिस्पर्शसे नारकियोंको दुःख भोगने पड़ते हैं । यदि नरककी मिट्टीका छोटासा टुकड़ाभी यहां आजाय तो उसकी दुर्गंधिसे कोसो दूर बैठे जीव शीघ्र मर जांय किंतु अभागे नारकी रातदिन उसमें पड़े रहते हैं ।
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