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( २५० ) भेदन किया करते हैं । उसकी स्त्रियोंके मुखचंद्रमाकी कृपासे अंधकार सदा दूर रहताहै इसलिये वहां दीपक आदिकी भी आवश्यकता नहीं पड़ती । जिससमय वहांकी स्त्रियां अटारियोंपर चढ़ जाती हैं उससमय चंद्रमा उनका चूड़ामणि तुल्य जान पड़ता है । और तारागण चूड़ामणिमें जुड़े हुवे सफेद मोतीसरीखे मालूम पड़ते हैं ।
दारानगरका स्वामी भलेप्रकार नीतिकलामें 'निष्णात : क्षत्रियवंशी मैं राजा मणिमाली था । मेरी स्त्री जोकि अतिशय गुणवती थी गुणमाला थी । गुणमालासे उत्पन्न मेरे एक पुत्र था उसकानाम मणिशेखर था और वह अतिशय नीति युक्त था। मैं भोगोंमें इतना मस्त था कि मुझे जाते हुवे काल का भी ज्ञान नथा। मैं सदा जिनधर्मका पालन करता हुआ आनंदसे राज्य करता था। _____ कदाचित् मैं आनंदमें बैठा था । मेरी पटरानी भेरे केशोंको सम्भाल रही थी । अचानकही उसै मेरे शिरमें एक सफेद वाल दीखपड़ा । वह एकदम अचम्भेमें पड़ गई । और कहने लगी--हाय जिस यमराजने बड़े बड़े चक्रवर्ती नारायण प्रति नारायणोंकोंभी अपना कवल वनालिया उसी यमराजका दूत यहां आकरभी प्रकट होगया । वस !!! ज्योंही मैंने रानी गुणमालाके ये वचन सुने मेरी आनंद तरंगें एक ओर किनारा कर गई । मेरे मुखसे उससमय ये ही शब्द निकले ।
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