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भूखने मुझे बुरी तरह सताया। मुझे और तो वहां भूखकी निवृत्तिका कोई उपाय नहीं सूझा । मैं सीधा नंदिनाथके पास गया। और मैंने विनयसे भोजनकेलिये उससे कुछ सामान मांगा। किं तु दुष्ट नंदिनाथने मेरी एक भी प्रार्थना न सुनी वह एक दम मुझ पर नाराज होगया । दो चार गालियां भी दे मारी । मुझै उससमय अधिक दुःख हुवा था । इसलिये अब मैं उनसे विना वदला लिये न छोडूंगा।उन्हें नंदिग्रामसे निकालकर मानूंगा। इसप्रकार महाराजके वचन सुनकर, और महाराजका क्रोध अनिवार्य है यह भी समझकर, मंत्रियोंने विनयसे कहा।
राजन् आप इससमय भाग्यके उदयसे उत्तमपदमें विराजमान हैं । आप सवोंके स्वामी कहे जाते हैं । आपको कदापि अन्याय मार्गमें प्रवृत्त नहीं होना चाहिये । संसारमें जो राजा न्याय पूर्वक राज्यका पालन करते हैं । उन्हे कीर्ति धन आदि की प्राप्ति होती है । उनके देश एवं नगरभी दिनोंदिन उन्नत होते चले जाते हैं । हे प्रजापालक ! अन्यायसे राज्यमें पापियों की संख्या अधिक बढ़जाती है । देशका नाश होजाता है। समम्तलोकका प्रलय होना भी शुरु होजाता है। हे महाराज ! जिसप्रकार किसान लोग खेतमें स्थित धान्यकी वाढ़ आदि प्रयत्नोंसे रक्षा करते हैं । उसाप्रकार राजाको भी चाहिये कि वह न्याय पूर्वक बड़े प्रयत्नसे राज्यकी रक्षा करै। हे दीनबंधो ! संसारमें राजाके न्यायवान होनेसे समस्तलोक न्यायवाला होता है।
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