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कहना महाराजने यह लकड़ी भेजी हैं । कौंनसा तो इसका नीचा भाग है और कौंनसा इसका ऊपरका भाग है ? यह परीक्षाकर शीघ्रही महाराजके पास भेजदो । नहीं तो तुम्हें नंदिग्राम से निकाल दिया जायगा ।
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महाराज की आज्ञापाते ही दूत राजगृह नगरसे चला और नंदिग्राम के ब्राह्मणों को लकड़ी देकर उसने कहा किराजगृहके स्वामी महाराज श्रेणिकने यह लकड़ी भेजी है । इसका कौंनसा तो अगला भाग है और कोनसा पिछला भाग है ? शीघ्रही परीक्षाकर भेजदो । यदि नहीं बता सको तो नंदिग्राम छोड़कर चले जाओ ।
दूतके मुख से जब महाराजका यह संदेशा सुनने में आया तो नंदिग्रामके ब्राह्मणों के मस्तक घूमने लगे । वे सोचने लगे यह वलाय तो सबसे कठिन आकर टूटी । इस लकड़ीमें यह बताना बुद्धिके बाह्य हैं कि कोंनसा भाग इसका पिछला है । और कोनसा अगला है ! इसका उत्तर जाना महाराजके पास कठिन है । अव हम किसीकदर नंदिग्राममें नहीं रह सकते । तथा क्षण एक ऐसे संकल्प विकल्प कर अति व्याकुल हो वे कुमारके पास गये।महाराजका सारा संदेशा कुमारको कह सुनाया और वह खैर की लकड़ी भी उनके सामने रखदी ।
ब्राह्मणोंको म्लानचित्त देख और उस खैरकी लकड़ी को निहार कुमारने उत्तर दिया आप महाराजकी इस आज्ञासे
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