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· रानीके प्रश्नको भलेप्रकार सुन करभी किसी भी बौद्धगुरुने उत्तर नहीं दिया। किन्तु पास ही एक ब्रह्मचारी बैठा था उसने कहा—मातः! यह समस्त साधुवृंद इससमय ध्यानमें लीन है । समस्त साधुओंकी आत्मा इससमय सिद्धालयमें विराजमान हैं । देह युक्तभी इससमय ये सिद्ध हैं । इसलिये इन्होंने आपके प्रश्नका जबाब नहीं दिया है । .
ब्रह्मचारीके ऐसे बचन सुन रानी चेलनाने और तो कुछभी जवाब न दिया। उन्हें मायाचारी समझ, मायाके प्रकट करनेकोलिये उसने शीघ्र ही मंडपमें आग लगा दी।
और उनका दृश्य देखनेकेलिये एक ओर खड़ी हो गई। एवं कुछ समय वाद राजमंदिरमें आ गई
फिर क्या था ? अग्नि जलते ही बौद्ध गुरुओंका ध्यान न जानें कहां किनारा कर गया। कुछसमय पहिले जो वे निश्चल ध्यानारूढ बैठे थे वे अब इधर उधर व्याकुल हो दौड़ने लगे । और रानीका सारा कृत्य उन्होंने महाराजको जा सुनाया।
बौद्ध गुरुओंके ये बचन सुन अवके तो महाराज कुपित होगये। वे यह समझ कि रानीने बडा अनुचित काम किया, शीघ्र ही उसके पास आये । और इसप्रकार कहने लगे
सुंदरि! मंडपमें जाकर तूने यह अति निंद्य एवं नीच काम क्यों कर पड़ा ! अरे? यदि तेरी बौद्धधर्म पर श्रद्धा नहीं है। | बौद्ध साधुओंको तू ढोंगी साधु समझती है तो तू उनकी भक्ति
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