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नाथ ! हाथ की रेखाके समान समस्त पदार्थों को जाननेवाले क्या इन मुनिराजको ज्ञानविभूतिको आप नहीं जानते ! । प्राणनाथ ! आपके मनकी बात मुनिराजने अपने परमपवित्र ज्ञानसे जान ली है । आप अचंभा न करें मुनिराजको आपके अंतरंगकी बातका पता लगाना कोई कठिन बात नहीं । आपके भवांतर का हाल भी ये बता सकते हैं। यदि आपको इच्छा है तो पूछिये । आप इनके ज्ञानकी अपूर्व महिमा समझें । रानी चेलना से मुनिराजके ज्ञान की यह अपूर्व महिमा सुन अबतो महाराज मगद कंठ हो गये । अपनी आखोंसे आनंदाश्रु पोंछते हुवे वे मुनिराजसे इसप्रकार निवेदन करने लगे
कृपासिंधो ! मैं परभवमें कौन था ? किस योनि से मैं इसजन्म में आया हूं? कृपया मेरे पूर्वभवका विस्तार पूर्वक वर्णन कहैं। इस समय मैं अपने भवांतर के चरित्र सुननेकेलिये अति आतुर एवं उत्सुक हूं। अतिविनयी महाराज श्रेणिकके ऐसे बचन सुन मुनिराजने कहाराजन् ! यदि तुम्हें अपने चरित्र सुननेकी इच्छा है तो तुम ध्यान पूर्वक सुनो मैं कहता हूं
इसीलोक में लाख योजन चौडा, द्वीपोंका शिरताज, अपनी गोलाईले चंद्रमा की गोलाईको नीचे करनेवाला जम्बूद्वीप है । जंबूद्वीपमें सुवर्णके रंगका सुमेरु नामका पर्वत है। सुमेरु पर्वत की पश्चिम दिशामें जो विजयार्द्ध पर्वत से छ खंडोमें विभक्त है, भरतक्षेत्र है । भरतक्षेत्र में एक अति रम
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